रफ़ाक़त हयात रफ़ाक़त हयात 1973 में सिंध के ज़िला नौशहरो फ़िरोज़ के क़स्बे मेहराबपुर में पैदा हुए। प्रारंभिक शिक्षा मेहराबपुर, नवाबशाह और ठट्टा में पाई और कराची यूनीवर्सिटी से बीए किया। शुरू में शायरी की लेकिन जल्द ही गद्य लेखन की तरफ़ आकृष्ट हो गए. कहानी लिखने का आग़ाज़ 1990 के बाद किया और पहला संग्रह ‘ख़्वाह-मख़्वाह की ज़िंदगी’ 2003 में प्रकाशित हुआ. पहला लघु उपन्यास ‘मीरवाह की रातें’ 2015 में पहली बार त्रैमासिक ‘आज’, कराची में शाय हुआ, और 2016 में पुस्तक के रूप में लाहौर से छपा। सिंधी के वरिष्ठ लेखक और शायर शब्बीर सूमरो ने उसे सिंधी भाषा में अनुदित किया जो 2018 में प्रकाशित हुआ। भारत में इसके तीन उर्दू संस्करण दिल्ली से प्रकाशित हो चुके हैं। दूसरा उपन्यास ‘नौजवान रोलाक के दुखड़े’ प्रकाशन के मरहले में है। ‘पाकिस्तानी उर्दू नावल:1947 से ताहाल’ शीर्षक से उर्दू के चुने हुए 69 उपन्यासों का विश्लेषण, उपन्यासकारों के परिचय और नमूने के पृष्ठों के साथ संकलित किया जो 2022 में अकादमी अदबियात, पाकिस्तान ने प्रकाशित किया। पेशे के लिहाज़ से रफ़ाक़त हयात स्क्रिप्ट राइटर हैं और कमर्शियल ड्रामों के इलावा बहुत सी साहित्य कृतियों और उपन्यासों का टीवी के लिए ड्रामा-रूपांतरण कर चुके हैं जिनमें स्टीफ़न ज़वीग का उपन्यास ‘बिवेयर ऑफ़ पिटी’, मुहम्मद ख़ालिद अख़तर का ‘चाकीवाड़ा में विसाल’ और नजीब महफ़ूज़ का उपन्यास ‘जिस रोज़ सदर का क़त्ल हुआ’ शामिल हैं। इसके इलावा मशहूर तुर्की ड्रामे ‘मेरा सुलतान’ के उर्दू संवाद भी तहरीर कर चुके हैं। अनुवादक का परिचय असरार गांधी जनवरी 1946 में इलाहाबाद में पैदा हुए। वे उर्दू के कहानीकार, अनुवादक और अवकाश प्राप्त अध्यापक हैं. प्रगतिशील विचारधारा से गहरा सम्बन्ध रेखते हैं। उनकी कहानियों के चार संग्रह ‘परत परत ज़िंदगी’, ‘रिहाई’, ‘गुबार’, ‘एक झूठी कहानी का सच’ प्रकाशित हुए। साथ ही रेखाचित्र, संस्मरण, आलोचनात्मक लेखन भी करते हैं। उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी ने लाइफ़ अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया और बंगाल उर्दू अकादमी ने कहानी संग्रह ‘परत परत ज़िंदगी’ को पुरस्कृत किया। उर्दू से हिंदी में शौक़िया अनुवाद करते रहे हैं तथा रेडियो, टीवी प्रोग्रामों और राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनारों में शरीक होते हैं।