"ममता कालिया ः 2 नवम्बर मथुरा में जन्मी ममता कालिया हिंदी साहित्य की अग्रपंक्ति में स्थान रखती हैं। वे हिंदी और इंग्लिश ,दोनों भाषाओँ में लिखती हैं किन्तु हिंदी को वे अपने ह्रदय की भाषा मानती हैं। दिल्ली मुंबई पुणे इंदौर की विभिन्न शिक्षा संस्थाओं से गुज़रते हुए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए इंग्लिश किया तथा वहीं प्राध्यापन भी। फिर वे मुंबई के एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय में परास्नातक विभाग में व्याख्याता बन गयीं। सन १९७३ से वे इलाहाबाद के एक डिग्री कॉलेज में प्राचार्य नियुक्त हुईं और वहीँ से सन २००१ में अवकाश ग्रहण किया। इन तथ्यों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है की सन १९६३ से लगा कर अब तक वे लगातार लिखती रही हैं और प्रासंगिक बनी हुई हैं .भारतीय समाज की विशेषताओं और विषमताओं पर अपनी पैनी नज़र रखते हुए ममता कालिया की प्रत्येक रचना के केंद्र में स्त्रीविमर्श उपस्थित है। विकासशील समाज में बनते बिगड़ते सम्बन्ध,प्रगति के आर्थिक,सामाजिक दबाव,स्त्री की प्रगति को देख कर पुरुष मनोविज्ञान की कुंठाएं और कामकाजी स्त्री के संघर्ष उनके प्रिय विषय हैं। प्रकाशित पुस्तकों की संख्या विपुल होने के कारण यहाँ केवल उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकों का उल्लेख किया जा रहा है। ममता कालिया ने कविता,कहानी,उपन्यास,संस्मरण,नाटक,यात्रा साहित्य और निबंधों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।
प्रमुख उपन्यास- १. बेघर, 2.नरक दर नरक, ३ तीन लघु उपन्यास., 4. दौड़., ५.दुक्खम-सुक्खम., ६.सपनों की होम डेलिवरी., ७ कल्चर -वल्चर।
प्रमुख कहानी संग्रह- १छुटकारा 2.सीट नंबर छह ३.उसका यौवन, 4.एक अदद औरत.५.जांच अभी जारी है.६.निर्मोही.7.मुखौटा.८.बोलने वाली औरत.9.थोडा सा प्रगतिशील.१०.खुशकिस्मत.
कविता-संग्रह- १ A Tribute to Papa @ other Poems.